किसी संधारित्र को एक बैटरी से आवेशित किया जाता है। फिर बैटरी को हटाकर, इस संधारित्र से, समान्तर क्रम में ठीक ऐसा ही एक अन्य अनावेशित संधारित्र जोड़ दिया जाता है। तो, इस प्रकार बने परिणामी निकाय की कुल स्थिर वैधूत ऊर्जा ( पहले संधारित्र की तुलना में) :
$2 $ गुना बढ जायेगी
आाधी हो जायेगी
वही रहेगी
$4 $ गुना बढ जायेगी
समान्तर प्लेट संधारित्र पर आवेश $q$ है। यदि बल लगाकर प्लेटों के मध्य दूरी दुगनी कर दी जाये तो बल द्वारा किया गया कार्य होगा
एक समांतर पट्टीकीय संधारित्र की प्लेटों के बीच की दूरी $d$ और प्लेटों का अनुप्रस्थ परिच्छेदित क्षेत्रफल $A$ है। इसे आवेशित कर प्लेटों के बीच का अचर विधुतीय क्षेत्र $E$ बनाना है। इसे आवेशित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा होगी
एक समान्तर प्लेट संधारित्र की प्लेटों के बीच की दूरी $2 \,mm$ है। इसे $300\, V$ की सप्लार्इ से जोड़ा गया है। ऊर्जा घनत्व होगा.......$J/m^3$
धारिता $C$ तथा $2 C$ के दो संधारित्रों को क्रमशः $V$ तथा $2 V$ विभवान्तर तक आवेशित किया जाता है। तत्पश्चात इन दोनों को इस तरह समांतर क्रम में जोड़ते हैं कि एक का धनात्मक सिरा दूसरे के ऋणात्मक सिरे से जुड़ जाता है। इस विन्यास की अंतिम ऊर्जा होगी। ($CV^2$ में)
चित्र में दिखाये गये परिपथ में जब स्विच ' $S$ ' को ' $A$ ' से ' $B$ ' स्थिति में लाते है तो धारिता ' $C$ ' तथा कुल आवेश ' $Q$ ' के रूप में, परिपथ में क्षयित ऊर्जा का मान होगा।